शिशु के घर मे आते ही हम एक जिम्मेदारी का अनुभव करने लगते है। उसकी छोटी छोटी समस्या देखकर कभी कभी घबरा भी जाते है, जबकि यह ज्यादातर ठीक ही होती है। कुछ सामान्य स्थितियों का जिक्र कर रहा हूँ

१. बच्चा आँख नहीं खोलता और आँख मे कीचड आ रहा है, यह प्रथम सात दिनों तक सामान्यतः होता है और सात दिन बाद बच्चा आँखे पूरी तरह खोलने लगता है।

२. ४-५ दिन की उम्र मे लाल चकत्ते उभारना, चिंता ना करे यह स्वतः ही चले जाते है: इनको एरिथमा टॉक्सिकं कहते हैं।

३. बीस से पचीस पैखाने प्रतिदिन करता है : यह छोटी मात्रा मे हल्दी के रंग के या हरे भी  सकते है,  हवा या मूत्र के साथ निकल जाते है।  सामान्य है और २-३ महीने तक हो सकते है। बच्चा बढ़ रहा है और पेशाब की मात्रा कम नहीं है तो चिंता ना करे।

४. बच्चा ७-८ दिन तक मलविसर्जन नहीं करता : अगर मल सख्‍त  नहीं है तो यह भी सामान्य ही है।

५. अत्यधिक दूध गिराता है : कोई कोई बच्चा जरा पेटू  होता है। ज्यादा दूध पीने के बाद  उसको वापस निकालता है और उस खट्टे दूध का स्वाद लेता है। पेशाब की मात्रा और बच्चे की बढ़त ठीक है तो चिंता ना करे।

६. बहुत अंगड़ाई लेता है : यह सामान्य है, और अच्छे स्‍वास्थ्य  का द्योतक  है।

७. रात में ज्यादा रोता है : गर्भवती माँ जब दिन में काम करती और चलती फिरती है तो गर्भस्त शिशु को झूले का आनंद मिलता है और वह सो जाता है। रात में जब माँ सोती है तो गर्भस्‍थ शिशु जगता है और उस समय माँ को बच्चे की हरकत भी अधिक महसूस होती है, यह दिन और रात का नियम ठीक होने में दो से तीन माह तक का समय लग सकता है और फिर बच्‍चे को सिर्फ्‍ रोने ही की आवाज निकालनी आती है, कोई जरूरी नहीं कि वह कष्‍ट में ही रोता हो, शोर मचाने के लिए भी रोने की आवाज निकालता है।

८ . छींकता है : यह अच्‍छा संकेत है, बच्‍चा वातावरण के अनुसार प्रतिक्रिया कर सकने में सक्षम है और उसके शारीरिक सिस्‍टम मजबूत है।

९.  बच्‍चे का शरीर गरम है और सर और हथेली जलती है : सर और हथेली और पेट शरीर के अन्‍य भागों से थोड़ा ज्‍यादा गरम होते है, इसको बुखार नहीं समझना चाहिए। नव शिशु को सामान्‍यतया बुखार होने का कोई कारण नहीं होता। थर्मामीटर में 99़4 तक भी बुखार आए तो गीले तौलिये से बदन पोछ दें, कपड़े कम कर दें और अगर कमरा गरम हो तो हल्‍की ठंडक का इंतजाम कर लें।

१०. ऑंखें और चेहरा पीला लगता है : पूर्ण विकसित और स्‍वस्‍थ बच्‍चों में पीलिया सामान्‍य बात है। ज्‍यादातर में इसके इलाज की जरूरत नहीं होती। बड़ों में होने वाले पीलिया में और नवजात में होने वाले पीलिया में फर्क होता है।