
नव शिशु का आहार माँ का दूध ही होता है – और कुछ नहीं। भगवान ने यह रेडीमेड आहार दिया है। सिर्फ शिशु का मुँह अपने स्तन के निप्पल के पास लाना है। दूध की महक से शिशु इसको पहचान लेगा और तुरंत निप्पल मुँह में लेकर दूध पीना शुरू कर देगा। इसके लिए किसी शिक्षा की जरुरत नहीं होती। भगवान शिशु को सारी कुशलता सीखा कर भेजता है। कैसे पीना है , कितना पीना है और किस तरह हावभाव दिखा कर या शोर मचा कर उसको प्राप्त करना है।
माँ को भी इसकी अधिक जानकारी की जरूरत नहीं। शिशु को सब मालूम है। जब मांगे तब पिलायें। जितना स्वयं पिए उतना पिलायें – पीते पीते छोड़ दे तो समझ ले की उसका पेट भर गया है। शुरू के कुछ माह शिशु जब तक जागेगा प्रत्येक ३० से ४५ मिनट में दूध की मांग करेगा। और किसी निश्चत समय पर ४ से ५ घंटे सोयेगा भी। जगा कर दूध पिलाना उचित नहीं। सोते समय शिशु पीये हुए दूध को पचा कर अपने शरीर में समा रहा होता है। धीरे धीरे यह अंतराल बढ़ता जाएगा और कुछ माह में शिशु दो से तीन घंटे पर दूध मांगेगा। अपने तरफ से स्तनपान का कोई नियम निर्धारित करने की कोशिश ना करें प्रथम तीन सप्ताह। हर माँ को चिंता रहती है की बच्चे ने ठीक से दूध पिया है की नहीं ? नगर शिशु समुचित पेशाब कर रहा है तो यकीनन उसने दूध ठीक से पिया है। क्योंकि उसने पानी तो पीया नहीं। पेशाब का पानी उसे दूध से ही मिल रहा है।
नव शिशु को एक बार का दूध एक तरफ से पिलायें अगली बार दूसरी तरफ से। क्योंकि शुरू का दूध पानी जैसा होता है और बाद का गाढ़ा ताकत वाला। इस गाढ़े दूध को पाने के लिए स्तन से दूध आख़िरी तक पीना पड़ेगा। इतना दूध पीने के ताकत आने में कुछ सप्ताह का समय लग सकता है। शिशु के बड़ा होने पर दूध की जरूरत बढ़ जाएगी, तब दोनों तरफ से पिलाना होगा।
गर्भावस्था में ही प्रत्येक स्त्री को अपनी चिकित्स्क से स्तन की जांच अवश्य करवा लेनी चाहिए। स्तन या निप्पल के बनावट में किसी विकार का इलाज़ शिशु जन्म से पहले करवा लेना चाहिए।